Last modified on 18 सितम्बर 2011, at 13:26

पूछो मत क्या हाल चाल हैं /वीरेन्द्र खरे अकेला

Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रात /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पूछो मत क्या हाल-चाल हैं
पंछी एक हज़ार जाल हैं
 
पथरीली बंजर ज़मीन है
बेधारे सारे कुदाल हैं
 
ऊँघे हैं गणितज्ञ नींद में
अनसुलझे सारे सवाल हैं
 
जिसकी हाँ में हाँ न मिलाओ
उसके ही अब नेत्र लाल हैं
 
होगी प्रगति पुस्तकालय की
मूषक जी अब ग्रंथपाल हैं
 
मंज़िल तक वो क्या पहुँचेंगे
जो दो पग चल कर निढाल हैं
 
जस की तस है जंग 'अकेला'
हाथों-हाथों रेतमाल हैं