भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने स्‍वामी के नीले कंठ से / कालिदास

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=कालिदास |संग्रह=मेघदूत / कालिद...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  अपने स्‍वामी के नीले कंठ से

भर्तु: कण्‍ठच्‍छविरिति गणै: सादरं वीक्ष्‍यमाण:
     पुण्‍यं यायास्त्रिभुवनगुरोर्धाम चण्‍डीश्‍वरस्‍य।
धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर्गन्‍धवत्‍या-
     स्‍तोयक्रीडानिरतयुवतिस्‍नानतिक्‍तै र्मरुद~भि:।।

अपने स्‍वामी के नीले कंठ से मिलती हुई
शोभा के कारण शिव के गण आदर के
साथ तुम्‍हारी ओर देखेंगे। वहाँ त्रिभुवन-
पति चंडीश्‍वर के पवित्र धाम में तुम जाना।
उसके उपवन के कमलों के पराग से
सुगन्धित एवं जलक्रीड़ा करती हुई युवतियों
के स्‍नानीय द्रव्‍यों से सुरभित गन्‍धवती की
हवाएँ झकोर रही होंगी।