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ओझा का स्वप्न / सेरजिओ बदिल्ला / रति सक्सेना

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उन दिनों मैं एक ओझा के उन्माद से ग्रस्त था जिसने कि रेगिस्तान के नीचे एक रेगिस्तानी जमीन को खोज निकाला था रेत के करीब रूखे पत्थर से बनी उजाड़ दीवार, स्तब्ध स्मृतियाँ जो मेरे कमजोर पिता से मिलती थीं ऐसा भोलापन नहीं था जो संदेह की जगह मरीचिका, जो मृत्यु लाती है को घुसपैठ करने दे पीछे से बंजर जमीन से अपने दर्दभरे जवाब सुनने को मैं ऊँचे पठार की और चला आया, मैदान में तारे देखता हुआ रात भर भटकता रहा समतल धरा में निरे सिद्धांतों वाले दिन चूना पत्थर पर चमकते चिह्न दुर्भाग्य के कगार पर एक परिदृश्य जहाँ बाहर संभवतया मेरे भाई हैं या फिर शत्रु? या फिर मेरे पिता भँवरे की टाँगों में लक्ष्यरहित उड़ रहे है ब्रह्मांड की कठोरता में