♦ रचनाकार: ईसुरी
ऎंगर बैठ लेओ कछु काने, काम जनम भर रानें
सबखाँ लागौ रात जियत भर, जौ नइँ कभऊँ बड़ानें
करियो काम घरी भर रै कैं,बिगर कछु नइँ जानें
ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।
ऎंगर बैठ लेओ कछु काने, काम जनम भर रानें
सबखाँ लागौ रात जियत भर, जौ नइँ कभऊँ बड़ानें
करियो काम घरी भर रै कैं,बिगर कछु नइँ जानें
ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।