भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रक्त में खिला हुआ कमल / केदारनाथ सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेरी हड्डियाँ
मेरी देह में छिपी बिजलियाँ हैं
मेरी देह
मेरे रक्त में खिला हुआ कमल
क्या आप विश्वास करेंगे
यह एक दिन अचानक
मुझे पता चला
जब मैं तुलसीदास को पढ़ रहा था

