Last modified on 10 जुलाई 2014, at 11:47

मधुर सु-सेवा से प्रसन्न हो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 10 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मधुर सु-सेवा से प्रसन्न हो शबरी से बोले श्रीराम।
भद्रे! शुचि शुश्रूषा की, अब जा‌ओ निज अभीष्ट हरि-धाम॥

आज्ञा पा, शबरी ने जलते पावक में जब किया प्रवेश।
दिव्य अग्रि-सम देह प्राप्तकर तेजस्वी धर पावन वेश॥

बसन, हार, आभूषण, अनुलेपन सब दिव्य परम तन धार।
विद्युत्‌‌-द्युति दमकाती पहुँची दिव्य धाम, तम के उस पार॥