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देखलौं दोस्ती, छलना छै / अमरेन्द्र

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देखलौं दोस्ती, छलना छै
ठोकर दै केॅ निकलना छै
जीवन ज्वालामुखिये रं
जै पर आबेॅ चलना छै
दुखके आगिन भाग में लिखलोॅ
बर्फे नांखी गलना छै
आपनोॅ शासन भाले नांखी
जै पर खड़ा संभलना छै
जब तांय साधू नेता रहतै
रूपकुँवर केॅ जलना छै
कत्तो समय हुवेॅ कीचड़ रं
कमल बनी केॅ खिलना छै
अमरेन्दर केॅ टाली राखबोॅ
जीत्तोॅ साँप निगलना छै

-9.2.92