Last modified on 29 मई 2008, at 08:43

कथाओं से भरे इस देश में / केदारनाथ सिंह

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:43, 29 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=बाघ / केदारनाथ सिंह }} कथाओं से भर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कथाओं से भरे इस देश में
मैं भी एक कथा हूँ
एक कथा है बाघ भी
इसलिए कई बार
जब उसे छिपने को नहीं मिलती
कोई ठीक-ठाक जगह
तो वह धीरे से उठता है
और जाकर बैठ जाता है
किसी कथा की ओट में

फिर चाहे जितना ढूँढ़ो
चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती
वह कहीं मिलता ही नहीं है
बेचारा भैंसा
साँझ से सुबह तक
चुपचाप बँधा रहता है
एक पतली-सी जल की रस्सी के सहारे
और बाघ है कि उसे प्यास लगती ही नहीं
कि वह आता ही नहीं है
कई कई दिनों तक
जल में छूटू हुई
अपनी लंबी शानदार परछाईं को देखने

और जब राजा आता है

और जंगल में पड़ता है हाँका

और तान ली जाती हैं सारी बँदूकें
उस तरफ़
जिधर हो सकता है बाघ
तो यह सचाई है
कि उस समय बाघ
यहाँ होता है न वहाँ
वह अपने शिकार का ख़ून
पी चुकने के बाद
आराम से बैठा होता है
किसी कथा की ओट में !