पीर उठती है दर्द बहता है
हाल हर रोज यही रहता है
सिर्फ मेरी नहीं कहानी ये
दर्द हर शख्स यही सहता है
आँसुओं को छुपाए है रखता
आह भरता न कोई कहता है
उसकी आँखों का हर छिपा आँसू
मेरी आँखों से ही क्यों बहता है
लड़खड़ा कर स्वयं संभल जाता
बाँह तो कोई नहीं गहता है