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चलो फिर बच्चे बन जाएँ / अंकिता जैन

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चलो फिर बच्चे बन जाएँ
चलो आज फिर से हम बच्चे बन जाएँ

मोहल्ले के बच्चों का एक गुट बनाकर,
हाथों में लड़की और गेंदे जमा कर,
हिटलर आंटी के घर के शीशे चटकाएँ
सारा-सारा दिन हम ऊधम मचाएं,
चलो आज फिर से हम बच्चे बन जाएँ ....!!

कागज़ के पंखों पर सपने सजाकर
गेंदे के पत्तों से कोई धुन बजाकर
ख़ाली थैलियों की पतंगें उड़ाएँ
रातों को टॉर्च से आसमां चमकाएं
चलो आज फिर से हम बच्चे बन जाएँ ....!!

मम्मी से बेमतलब लाड़ जताकर,
पापा से रेत के घर बनवाकर,
भैया की साइकल के पैडल घुमाकर
दीदी की गुड़िया को भूत बनाकर
रह गयी यादों को फिर से सहलाएं
हर घर की घंटी बजाते भागे जाएँ,
बागों से छुप-छुपकर आम चुराएँ
चलो आज फिर से हम बच्चे बन जाएँ ....!!