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भारती का लाल / वीरेन्द्र वत्स

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तू धधकती आग है
तू बरसता राग है
नींव है निर्माण है तू
प्रेम है बैराग है
 
तू मधुर मधुमास है
ज़िन्दगी की आस है
जो हृदय की पीर हर ले
वह अडिग विश्वास है

धर्म का आगार है
पुण्य का विस्तार है
ग्रीष्म में शीतल पवन है
प्यास में जलधार है
 
ज्ञान योगी-कर्म योगी
तू धरा की आन है
राष्ट्र का कल्याण जिसमें
तू वही अभियान है
 
भारती का लाल है
सज्जनों की ढाल है
विकट है विकराल है तू
दुर्जनों का काल है