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वक़्त को घर बुला लिया होता / चन्द्र त्रिखा
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वक़्त को घर बुला लिया होता
कुछ तो उससे गिला किया होता
जिन्दगी भर समझ नहीं आई
मौत से सुर मिला दिया होता
इतना आगे क्यों आप ले आए
रास्ते में भुला दिया होता
सारी ख़ुशियाँ कहाँ गंवा बैठे
कोई तो नक़्शे-पा मिला होता
कुछ सलीक़ा ही आप दे जाते
दर्द को लफ़्ज़ दे लिया होता
आपसे क्या गिला किया जाए
काश! कुछ तो गिला किया होता

