Last modified on 28 मई 2010, at 21:05

यह तो शीशमहल है / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्धु में छोड़ी / ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


यह तो शीशमहल है
राग बिरंगे शीशों की ही इसमें चहल-पहल है 

शीशे के हैं सारे प्राणी 
भवन, बगीचे, राजा-रानी
सब पर है सोने का पानी 
करता जो झलमल है
 
शीशा है आँखों को ठगता 
मन को सौ रंगों से रँगता
छोटा, बड़ा, जहाँ जो लगता 
शीशे का ही छल है 
 
फिरता जग छवि से भरमाया
इस माया को समझ न पाया
इस झिलमिल शीशे की छाया
स्थिर भी, चिर-चंचल है

यह तो शीशमहल है
राग बिरंगे शीशों की ही इसमें चहल-पहल है