Last modified on 3 सितम्बर 2011, at 23:34

पारिजात / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ / अष्टम सर्ग / पृष्ठ - ४

सुरा का सर में सौदा भर।
पी उसे बनकर मतवाला।
किसलिये ढलका दे कोई।
सुधा से भरा हुआ प्यारेला॥5॥

बड़े सुन्दर कमलों के ही।
क्यों नहीं बनते अलिमाला।
क्यों बना वे बुलबुल हमको।
रंगतें दिखा गुलेलाला॥6॥

उतारा गया किसलिये वह।
पहनकर कनइल की माला।
गले में सुन्दर फूलों का।
गया था जो गजरा डाला॥7॥

सुरुचि-कुंजी से खुलता है।
पूततम भावों का ताला।
मनुज है दिवि-विभूति पाता।
बन गये दिव्य हृदयवाला॥8॥

(8)

मैं फूल के लिए आयी।
पर फूल कहाँ चुन पाई॥1॥

सखि! था हो गया सवेरा।
लाली नभ में थी छाती।
ऊषा लग अरुणा-गले से।
थी अपना रंग दिखाती।
तरु पर थी बजी बधाई॥2॥

था खुला झरोखा रवि का।
थी किरण मंद मुसकाती।
इठलाती धीरे-धीरे।
थी वसुंधरा पर आती।
सब ओर छटा थी छायी॥3॥

मुँह खोल फूल थे हँसते।
कलियाँ थीं खिलती जाती।
उन पर के जल-बूँदों को।
थी मोती प्रकृति बनाती।
दिव ने थी ज्योति जगाई॥4॥

मतवाले भौं आ-आ।
फूलों को चूम रहे थे।
रस झूम-झूम थे पीते।
कुंजों में घूम रहे थे।
वंशी थी गई बजाई॥5॥

तितलियाँ निछावर हो-हो।
थीं उनको नृत्य दिखाती।
उनके रंगों में रँगकर।
थीं अपना रंग जमाती।
वे करती थीं मनभाई॥6॥

आ मृदुल समीरण उनसे।
था कलित केलियाँ करता।
अति मंजुल गति से चलकर।
फिरता था सुरभि वितरता।
थीं रंग लताएँ लाई॥7॥

सब ओर समा था छाया।
थीं ललकें देख ललकती।
भर-भर प्रभात-प्यारेले में।
थी छवि-पुंजता छलकती।
थी प्रफुल्लता उफनाई॥8॥

यह अनुपम दृश्य विलोके।
जब हुआ मुग्ध मन मेरा।
कोमल भावों ने उसको।
तब प्रेम-पूर्वक घेरा।
औ' यह प्रिय बात सुनाई॥9॥

ऐसे कमनीय समय में।
जब फूल विलस हैं हँसते।
कितनों को बहु सुख देते।
कितने हृदयों में बसते।
रुचि है जब बहुत लुभाई॥10॥

तब उनको चुन ले जाना।
कैसे सहृदयता होगी।
क्या सितम न होगा उन पर।
क्या यह न निठुरता होगी।
यह होगी क्या न बुराई॥11॥

छिन जाय किसी का सब सुख।
वह छिदे बिधो बँधा जाये।
मिल जाय धूल में नुचकर।
दलमल जाये कुम्हलाये।
गत उसकी जाय बनाई॥12॥

पर कोई इसे न समझे।
रच गहने अंग सजाये।
मालाएँ गज गूँथे।
पहने बाँटे पहनाये।
तो होगी यह न भलाई॥13॥

जब सुनीं दयामय बातें।
तब मेरा जी भर आया।
डालों पर ही फूलों का।
कुछ अजब समाँ दिखलाया।
मैं फूली नहीं समाई।
पर फूल कहाँ चुन पाई॥14॥

(9)

पहने मुक्तावलि-माला।
कोई अलबेली बाला॥1॥
है विहर रही उपवन में।
कोमलतम भावों में भर।
अनुराग रँगे नयनों से।
कर लाभ ललक लोकोत्तर।
पी-पी प्रमोद का प्यारेला॥2॥