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अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया  
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आदमी का आदमी शिकार हो गया  
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जरुरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की  
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शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया |
 
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19:38, 13 जुलाई 2011 का अवतरण

शीर्षक

 मुक्तक 

अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया, आदमी का आदमी शिकार हो गया, जरुरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की, शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया |