विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार के विजेता

विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार [दिसम्बर 2022]

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पल्लवी विनोद
'विनिमय'
कहानी के लिए

11,000 रुपये
सम्मान पत्र

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राजकुमार श्रेष्ठ
'सत्य और कल्पना के बीच'
कविता के लिए

5,000 रुपये
सम्मान पत्र

दो सदस्यीय निर्णायक मंडल

Photograph of Lalit Kumar
मनीषा कुलश्रेष्ठ
प्रख्यात लेखिका
Photograph of Lalit Kumar
यश मालवीय
प्रख्यात कवि

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कहानी (निर्णायक: मनीषा कुलश्रेष्ठ)

विटामिन ज़िंदगी पुरस्कार एक नयी शुरुआत है हिंदी साहित्य में विकलांग विमर्श की। साहित्य समाज के हर उजले-अंधेरे कोने, हर संवेदना और संघर्ष पर अपनी दृष्टि केंद्रित करता है। मानसिक और दैहिक विकलांगता पर हिंदी में कुछ क्लासिक कहानियां है लेकिन वह संख्या न्यूनतम है।

इसलिए विटामिन ज़िंदगी का यह प्रयास बहुत सराहनीय है। सबसे अच्छी बात है कि अन्य विमर्शों की तरह इसमें केवल उनसे आमंत्रित नहीं की गयीं हैं जो इससे प्रभावित हैं, बल्कि जो अपनी निगाह खुली और मन स्पंदित रखते हैं उनसे भी कहानियां मांगी हैं। ललित को साधुवाद, यह विमर्श समाज में नयी जागृति लाए कि विकलांग विमर्श महज सहानुभूति की मांग नहीं करता न ही 'दिव्य' विशेषण लगा कर अतिरिक्त संवेदना की, बल्कि उनके संघर्ष, मनोविज्ञान, ज़मीनी आवश्यकताओं की ओर ध्यान दिलाता है। समाज में सहज स्वीकृति और सहयोग की मांग करता है।

पुरस्कार के इस संस्करण में 'विनिमय' शीर्षक से कहानी को विजेता चुना जा रहा है। इस कहानी में दृश्यात्मकता है और कहानी का क्राफ्ट भी है। विकलांगता को लेकर संघर्ष, मनोविज्ञान और सहज दृष्टिकोण भी इसमें है। इसमें लेखक दैहिक और मानसिक विकलांगता दोनों पर केंद्रित रहा है। भाषा भी अच्छी है। रूमानियत अलग ढंग से आई है।

अन्य उल्लेखनीय कहानियों में 'सकाल ध्यानम्‌' ने प्रभावित किया। इसमें कहानी कहानी की तरह विस्तार पाती है। संघर्ष दृश्यात्मक है। नायक की जीजिविषा और ज़िद इस कहानी को अलग स्तर पर ले जाती है। कश्मीरी बच्चे के चारों ओर घूमती एक और कहानी है जिसमें लेखक ने शीर्षक नहीं दिया है। इस कहानी में परिवेश बहुत सुंदर ढंग से आया है। यदि भाषाई अशुद्धियाँ और थोड़ी जल्दबाजी न होती तो यह कहानी विजेता भी हो सकती थी। 'सफेद कोट' शीर्षक से भी एक अच्छी कहानी है, मगर यह काफ़ी प्रिडिक्टेबल रही।

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कविता (निर्णायक: यश मालवीय)

विजेता काव्य रचना के रूप में 'सत्य और कल्पना के बीच' कविता का चयन किया जा रहा है। इस रचना में कवि ने एक दृष्टिहीन व्यक्ति के मन को पढ़ने का प्रयत्न किया है। एक दृष्टिहीन मनुष्य किस प्रकार अपने आस-पास के परिवेश को जानता, समझता होगा, इसका अनुमान लगाने की कोशिश में कवि ने सुंदर ढंग से अपनी बात कही है।

इसके अलावा 'यूँ मेरा सोया पाँव जगा' कविता ने प्रभावित किया। इस कविता में केवल पाँव ही नहीं जगा है वरन सपनों का एक झिलमिलाता संसार भी जाग उठा है, जिन सपनों के लिये कभी महादेवी जी ने कहा था- सब आँखों के आँसू उजले, सबके सपनों में सत्य पला। 20 हाइकु की एक शृंखला (जिसमें एक हाइकु इस प्रकार था 'उसका साथी / कोई मनुष्य नहीं / व्हील चेयर!') भी अच्छी रचना बन पड़ी है।

ये ऐसी कविताएँ हैं, जो किसी भी प्रकार के हीनताबोध से सर्वथा मुक्त हैं। इनमें अपराजेय आत्मविश्वास और उत्कट जिजीविषा की गूँजें-अनुगूँजें स्पष्ट रूप से सुनी और महसूस की जा सकती हैं। इनके अतिरिक्त भी कुछ कवितायें हैं जिनमें जीवन के प्रति रचनात्मक-धनात्मक दृष्टिसम्पन्नता के दर्शन होते हैं। बिना बेचारा बने या किसी भी प्रकार की निरीहता या दयनीयता के इन्हें रचा गया है, तभी तो यह कविताएँ जीवन का जयगान बन गई हैं।

विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार [दिसम्बर 2021]

Photograph of dr geeta sharma
डॉ. गीता शर्मा
'उड़ता पहाड़ और तारों भरी रात'
कहानी के लिए

6,000 रुपये
सम्मान पत्र

Photograph of Dr. Chamn T Maheshwari
डॉ. चमन टी. माहेश्वरी
'ग़लत ही सही है'
कहानी के लिए

6,000 रुपये
सम्मान पत्र

Photograph of Khushbu Jangid Jijivisha
खुशबू जांगिड़ 'जिजीविषा'
'उसने पूरा जहान देखा'
कविता के लिए

3,000 रुपये
सम्मान पत्र

Photograph of Phoolesh Sanchihar Farag
फूलेश साँचीहर 'फ़राग़'
'दौरे-हाज़िर के मुक़ाबिल'
कविता के लिए

3,000 रुपये
सम्मान पत्र

Photograph of Gita Pandita
गीता पंडित
'इन्बॉक्स'
उपन्यास के लिए

विशेष रेखांकित रचना
सम्मान पत्र

एक सदस्यीय निर्णायक मंडल
Photograph of Anamika, Hindi Poet
डॉ. अनामिका
वरिष्ठ हिन्दी कवियत्री
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता

'विकल हैं प्राण मेरे' -- ये पंक्ति और साहित्य के कई ऐसे देदीप्यमान प्रसंग इस बात की सजग गवाही दते हैं कि विकलता यथास्थिति के प्रतिरोध की ओर उठा पहला अचेत कदम है।

'जो है, उससे बेहतर चाहिए' -- जिस किसी में इसकी चेतना जागती है, पहले प्राण विकलता के स्पंदन से भर जाते हैं, एक पुकार-सी जगती है भीतर और अहंकार का वह घर अचानक ही दरक जाता है जिसे 'फूटा कुंभ जल जलहिं समाना' की उच्चतम स्थिति कहते हैं।

विकलांगता की इस विशिष्ट अवस्था के जितने भी मन:सामाजिक आयाम हो सकते हैं; उनको निवेदित कुछ कहानियाँ और कविताएँ 'कविता कोश' ने उपलब्ध करायीं। इसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ।

कहानियों और कविताओं में दो-दो प्रविष्टियाँ मुझे समान रूप से प्रभावशाली लगीं। कहानियों में 'उड़ता पहाड़ और तारों भरी रात' तथा 'ग़लत ही सही', कविताओं में 'फिर भी जाने कैसे उसने पूरा जहान देखा' और 'दौरे-हाज़िर के मुकाबिल!' आत्मदया और आत्मलांछन, वैशिष्ट्य बोध और दीनता-बोध एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। साहित्य चित्र भी जिस अकुंठ सहजावस्था, स्थितप्रज्ञता सम्यक्‌ दृष्टि की ओर लिए जाने का वायदा करता है-- उसमें दोनों में किसी की कोई गुंजाइश नहीं बनती - न आत्मदया की, न आत्म मुग्धता की, बल्कि 'आत्म और अनात्म' के बीच की दीवार ही ढह जाती है वहाँ तो। जिसे भारतीय साहित्यशास्त्र 'साधारणीकरण' कहता है उससे मिलता जुलता भाव है 'कथार्सिस' जहाँ 'अयं निजः परोवेति' की चेतना तिरोहित हो जाती है। चित्त की विकलता हो या दैहिक धरातल की कोई विकलता -- धीरे-धीरे थिरा जाती है और चेतना का चन्द्रोदय होता है -- वहाँ न सुख होता है, न दुख, बस एक अलहदा अहसास जो उम्र भर की कमाई मानी जा सकती है।

'उड़ता पहाड़ और तारों-भरी रात' का अवि इसी महीन अहसास का काव्यात्मक विनियोग इस कहानी में करता है। अपरिभाषित संबंधों का मर्म टटोलती यह कहानी 'उम्र-भर एक मुलाकात चली जाती है' वाले अहसास से सराबोर है। इसके शिल्प में लोक कथा, परीकथा, फेबल और एलिगरी (दृष्टांत कथा) की झीनी फुहियाँ बरसती हैं -- पर फिर भी यह पुराने ढंग के रूमान में नहीं डूबता। यहाँ कोई असम्यता 'असम्भवा' (The Impossible She) 'सन्ध्या सुंदरी-सी' जीवन मे नहीं उतरती, हाड़ मांस की जिंदा औरत मनःसामाजिक यथार्थ ने पूरे खुरदरेपन के साथ मिलती-बिछड़ती है और योग-वियोग , विकलता, अस्थिरता के बीच में झिलमिल प्रदेश में निहित संभावनाओं के बीच भटका देती है! जो एक झटके में आपको ससीम से निस्सीम कर दे, आपको अपनी ख़ुदी से मिलवा दे -- वही तो है प्रेम। दैहिक-आत्मिक अहसास से उभरने का नैतिक साहस भरने वाले इस प्रेम में विकलता है तो दोनों तरफ संतोष है। कोई कृपा भाजन नहीं कोई करुणा का आगार नहीं। यही इस कथा की विशेषता है।

दूसरी कहानी 'गलत ही सही है' बहुत विकट नैतिक कुटिलता पर सर्च लाइट की सीधी रोशनी मारती है और उत्कृष्ट साहस के साथ यह तथ्य उजागर करता है कि यौन-चेतना के परे चले गए जो विकलांग-साथी हैं, उनके युवा पति/पत्नी गहरी थकान या उदासी के क्षण किसी सह दुखभोगी से दैहिक संपर्क साध भी लेते हैं तो इससे विकलांग जीवन-साथी के प्रति उनके प्रेम को कोई ग्रहण नहीं लग जाता, उनके प्रति सेवा-समर्पण का भाव प्रश्नांकित नहीं हो जाता। कहानी बहुत सधे हुए ढंग से त्रिकोण नहीं, चतुष्कोण सृजित करती है जहाँ सब सबकी स्थिति से अवगत है और कहीं कोई हाय-तौबा नहीं मचती। 'लेडी चैटरलीज़ लवर' में जब डी.एच. लॉरेंस ने एक प्रेम त्रिकोण गढ़ा था, वहाँ दैहिक आवेग प्रबल थे, यहाँ पारस्परिक सम्मान और आपसदारी एक नई ऊँचाई तक जाती है।

दोनों कविताएँ जो मैं विशेष रूप से रेखांकित कर रही हूँ -- वे इतने छोटे से स्पेस में जीवन की विकट व्यंजनाएँ मंचित करने के अद्भुत कौशल के कारण ही नहीं अपने अंदाजे-बयाँ की पुरकशिश सादगी के कारण भी सराहनीय हैं। कविता में सबसे महत्वपूर्ण होता है हल्के इशारों में बात का मर्म उजागर करने का वाक्‌-संयम, अपनी वल्गा खींचे रहने का आत्मगौरव। विकलांगता को एक विशाल रूपक की तरह बरतती ये रचनाएँ प्राणों में प्राण फूँक देने के अपने संकल्प में भी सर्वथा सफल हैं। मात्राएँ थोड़ी और सध जाएँगी तो असर और अधिक होगा।

'इनबॉक्स' नाम का उपन्यास एक विकलांग बच्चे की मौत के बाद उसे लिखी गई चिठ्ठियाँ हैं जो उसकी माँ ने लिखी है। शिल्प और कथा दोनों के लिहाज से यह एक परिपक्व कृति है जिसे जस-का-तस प्रकाशित किया जाय तो विकलांग जीवन का अंतरंग चित्रपट-सा खुलता चला जाएगा। जानना ही मानना है। अंतरंगता की बुनावट जिस काव्यत्मक महीनता से रेशा रेशा सामने आई है -- उससे पाठको में विकलांग विशिष्टों से 'पक्की वाली दोस्ती' का जज़्बा जगकर रहेगा -- यह मेरा विश्वास है।

विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार [जुलाई 2021]

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आलोकिता
'च्यूइंगम'
कहानी के लिए

11,000 रुपये
सम्मान पत्र

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डॉ. गीता शर्मा
'शरद पूनम के चांद'
कविता के लिए

5,000 रुपये
सम्मान पत्र

एक सदस्यीय निर्णायक मंडल
Photograph of Lalit Kumar
सम्यक ललित
संस्थापक, विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार

विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार के दूसरे संस्करण के परिणामों की घोषणा करते हुए मुझे प्रसन्नता हो रही है। दूसरे संस्करण के लिए प्राप्त हुई सैंकड़ों प्रविष्टियों में से विजेता प्रविष्टियों को चुनने का कार्य इस मैंने ही किया है। प्राप्त हुई प्रविष्टियों में अनेक कहानियाँ और कविताएँ अच्छी लगीं। चुनाव करते समय मेरा सबसे बड़ा पैमाना यह देखना था कि लेखन में संवेदना की बारीकी है या नहीं। "बारीक संवेदना" -- इस शब्द चयन को मैं भविष्य में भी दोहराऊँगा -- बल्कि यह शब्द चयन विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार के लिए एक आधारभूत आवश्यकता का रूप भी लेगा।

जैसा कि प्रथम पुरस्कार में देखा गया था -- अधिकांश लेखक इस बार भी विकलांगता और प्रेरणा के चक्र से बाहर नहीं निकल पाए। विकलांगजन को एक प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत कर देने मात्र से विकलांगता-विमर्श पूरा नहीं होता। विकलांगता और विकलांगजन के जीवन के भी उतने ही पक्ष होते है जितने पक्ष किसी भी इंसान के जीवन में होते हैं। इसलिए विकलांगजन को प्रेरणा के दायरे में बंद कर देना समाज के एक बड़े वर्ग के साथ अन्याय है। विकलांगता विमर्श और विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार के पीछे मेरा उद्देश्य साहित्यिक लेखन में विकलांगता से जुड़ी बारीक संवेदना की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना है। पुरस्कार के दूसरे संस्करण के दोनों विजेता संवेदना की उस बारीकी को छू पाए हैं और इसीलिए उन्हें चयनित किया गया है।

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कहानी

इस बार सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार आलोकिता द्वारा लिखित "च्यूइंगम" कहानी को दिया जाना चाहिए। इस कहानी में बालमन पर विकलांगता के कारण पड़ रहे प्रभाव को बखूबी दिखाया गया है। कहानी के ताने-बाने में जितने भी किरदार हैं वे ऐसे लगते हैं जैसे हमने उन्हें कहीं न कहीं देखा हो। इन किरदारों का व्यवहार भी ऐसा है जैसा उमूमन देखने में आता है। यह उस मोड़ की कहानी है जहाँ विकलांगता से प्रभावित एक बच्चा अपने मन को एक विशेषता के लिए तैयार करना आरम्भ कर देता है।

आलोकिता की कहानी के अलावा डॉ. गीता शर्मा की कहानी 'नीला शॉल'; ऋता शेखर 'मधु' (रीता प्रसाद) की कहानी 'आयुष'; दयासागर धरुआ की कहानी 'जुगनू' और किंशुक गुप्ता की कहानी 'मन के हारे हार है' भी अच्छी लगीं -- आप सभी को शुभकामनाएँ व धन्यवाद।

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कविता

सर्वोत्तम कविता का पुरस्कार डॉ. गीता शर्मा द्वारा लिखित "शरद पूर्णिमा के चांद" कविता को मिलना चाहिए। यह कविता एक अलग नज़रिये से विकलांगजन के प्रति सम्मान और समभाव का आग्रह करती है। इस आग्रह में यह तो माना गया है कि समाज में कोई अधिक सम्पन्न और कोई कम साधनों वाला होता है लेकिन यह भी खूबसूरती से बताया गया है कि यदि सम्मान-सहित-सहायता और समभाव मिले तो कम-साधन-सम्पन्न भी समाज कोए बेहतर और सुंदर बनाने में योगदान दे सकते हैं।

डॉ. गीता शर्मा की कविता के अलावा वैशाली थापा की कविता 'वो हम हैं'; गोपी नाथ कृष्ण की रचना 'बुलंद हौसले ही हैं विटामिन-ए-जिंदगी'; जसवीर सिंह अरोड़ा की कविता 'पूरकता और सहयोग का मतलब'; देवेश पथ सारिया की कविता 'कलाकार' और निर्मला सिन्हा की कविता 'हमारी भावनाओं को समझें' भी बहुत पसंद आईं -- आप सभी को शुभकामनाएँ व धन्यवाद।

विजेताओं के साथ ही प्रविष्टियाँ भेजने वाले सभी रचनाकारों को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ और मेरी ओर विशेष धन्यवाद -- साहित्य में विकलांगता विमर्श को आगे बढ़ाने में आपके इस योगदान के लिए मैं व्यक्तिगत-रूप से आभारी हूँ।

सम्यक ललित
नई दिल्‍ली
दिनांक: 05 जुलाई 2021

प्रथम विटामिन ज़िन्दगी पुरस्कार [अप्रैल 2021]

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निर्देश निधि
'जीकाजि'
कहानी के लिए

11,000 रुपये
सम्मान पत्र

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गोविन्द सिंह चौहान
'दिव्यांगता'
कविता के लिए

5,000 रुपये
सम्मान पत्र

एक सदस्यीय निर्णायक मंडल
Om Nishchal
डॉ. ओम निश्चल
प्रख्यात कवि, लेखक, आलोचक

विकलांगता विमर्श अब कोई अदेखा अजाना प्रत्‍यय या विमर्श नहीं रहा। यह और बात है कि दुनिया में अब तक फैले स्‍त्री विमर्श और दलित-आदिवासी विमर्श या रंगभेद विमर्श के बीच कभी विकलांगता विमर्श पर ध्‍यान न गया था, जो कि एक जरूरी सामाजिक विमर्श है और यह उन कथित असमर्थ विकलांग कहे जाने वाले लोगों का विमर्श है जिन्‍होंने शारीरिक विकलांगता के बावजूद याचना की शरण नहीं ली। अपने सामर्थ्‍य को सामर्थ्‍यवान लोगों से आगे बढ़ कर सिद्ध किया। समाज की मुख्‍यधारा में स्‍वीकार्य बने। अपने कौशल से अपने प्रति समाज का नज़रिया बदला। ऐसे समय जब विकलांगता एक प्रकृतिप्रदत्‍त या दुर्घटनाप्रदत्‍त व्‍याधि है इससे लड़ने के लिए न केवल सामाजिक जागरूकता की जरूरत है बल्‍कि इसे रचनात्‍मक बनाने की ओर भी ध्‍यान जाना चाहिए। ललित कुमार ने स्‍वयं दिव्‍यांग होते हुए जिस तरह एक एक पल की दुरूहताओं को जीवन साध्‍य बनाने की चेष्‍टा की है तथा दुनिया के संभवत: सबसे बड़े कविता कोश को खेल खेल में अपने कुछ सदाशयी मित्रों के आत्‍मबल से संभव किया है वह कविता के इतिहास में एक दुर्लभ उदाहरण है। विटामिन जिन्‍दगी नामक उनकी आत्‍मकथा उनके इसी आत्‍मबल का जीवन वृत्‍तांत है जो लाखों विकलांगों का प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कविता

विटामिन जिन्‍दगी कविता पुरस्‍कार के लिए आई कविताएँ ध्‍यान से पढ़ीं। मुक्‍त छंद और छंद दोनों शैलियों में कई कविताओं ने मन मोहा। तकलीफों को बयान करने का कवियों का काव्‍यात्मक ढंग अच्‍छा लगा। हम जानते ही है कि पीड़ा जब अपने उच्‍चतम शिखर पर होती है तो वह एक गान में बदल जाती है। मीठे गान में। इस आह में वाह की आकांक्षा भले न हो पर वह शुद्धतम अनुभूति अवश्‍य होती है जैसी अनुभूति क्रौंचवध को देख कर आदि कवि वाल्‍मीकि के स्‍वर में गूंजी थी। पीड़ा के कविता बनने की राह आसान नही है। यह इतिवृत्‍तात्‍मकता से आगे की चीज है। कविता की कसौटी यही है कि वह धूमिल के शब्‍दों में, 'अक्षरों में गिरे हुए आदमी को पढ़े और लाचार आंसुओं को अपने भाल पर रखे।

तमाम कविताओं के बीच जो कविता इस विषय को कविता की सूक्ष्‍म शक्‍तियों को बरतते हुए मिली वह है 'दिव्‍यांगता'।

यों तो इस प्रविष्‍टि समूह की दो अन्‍य कविताएँ उसके हिस्‍से का वसंत और द लेफ्ट लेग भी सराहनीय हैं और कविता के अंदाजेबयां को अपने अपने स्‍तर पर सिद्ध करती हैं तथापि दिव्‍यांगता कविता इस समस्‍या के मूल में जाकर एक विकलांग व्‍यक्‍ति के कंधे पर समव्‍यथी हाथ रखती है और बड़ी खूबी और सहृदयता से यह बात कह देती है कि बहुत कम लोग होते हैं दुनिया में जिन्‍हें प्रकृति संघर्ष के लिए चुनती है।

मेरी दृष्‍टि में दिव्‍यांगता सर्वोत्‍तम कविता है तथा यह विटामिन जिन्‍दगी पुरस्‍कार के सर्वथा योग्‍य है।

विटामिन ज़िन्‍दगी पुरस्‍कार : कहानी

विटामिन जिन्‍दगी कहानी पुरस्‍कार के अंतर्गत प्राप्‍त सभी कहानियों का पारायण किया। एक से एक संवेदनशील कहानी। लगा कि विकलांग समस्‍या को हमारे वक्‍त के कहानीकार पकड़ रहे हैं। जन्‍मजात विकलांगता, किसी व्‍याधिवश विकलांगता या दुर्घटनावश विकलांगता--इसके कई रूप हैं। पहले ऐसे व्‍यक्‍तियों को परिवार के लिए अभिशाप माना जाता था। यह आशंका भी कि कैसे यदि व्‍यक्‍ति बच भी जाए तो इतना लंबा जीवन कैसे चलेगा। यानी उसे हर तरह से अक्षमता का पर्याय मानने या बनाने पर दुनिया तुली रहती थी या फिर नियतिवादी हो जाती थी। आज भी यद्यपि इसे नियति या प्रारब्‍ध मानने वालों की संख्‍या कम नहीं है पर इसके बावजूद विकलांगों के लिए सुविधाओं में इजाफा होने के साथ उन्‍हें अन्‍यथा सक्षम बनाने की दिशा में बहुत काम हुए और हो रहे हैं। पर हमारी मानसिकता दिव्‍यांगों को लेकर अभी बहुत हद तक नहीं बदली है। इसलिए इस क्षेत्र में जागरूकता के लिए आत्‍मविश्‍वास के उत्‍थान के लिए जरूरी हैं कि इस समस्‍या को कहानी जैसे रचनात्‍मक माध्‍यम से उठाया जाए। इस पर फिल्‍में बनें, नाटक खेले जाएं। इसे जीवन के अन्‍य विमर्शों की तरह एक अनिवार्य विमर्श के रूप में लिया जाए।

उक्‍त पुरस्‍कार योजना में आई कहानियों में यों तो विकलांग ऐंगल से सभी कहानियों का ढाँचा मानवीय वृत्‍तांत के रूप में बुना गया है। कुछ तो सत्‍य के करीब लगती हैं तो कुछ में कल्‍पना और यथार्थ को कोमल मानवीय स्‍वरूप देते हुए पोयटिक जस्‍टिस के रूप में उपनिबद्ध किया गया है। मेरी तरफ से हॉं है, तुम सक्षम हो, जीकाजि जैसी कहानियां बहुत खूबसूरती से लिखी गयी हैं। तथापि, इन सब कहानियों में 'जीकाजि' मुझे सर्वोत्‍तम लगी । उसमें एक लड़की जिस तरह दुर्भागयवश विकलांग हो चुके लड़के को अंत तक समर्थन और स्‍नेह देती है तथा अंतत: परिवार के विरोध और तर्क वितर्क के बावजूद उससे शादी करने पर अडिग रहती है वह समाज में दिव्‍यांगों के प्रति न्‍यायिक और अपने अर्जित स्‍नेह के प्रति समर्पण की एक भावपूर्ण लेकिन आत्‍मा से उत्‍प्रेरित आधुनिक जीवन दृष्‍टि का साहसिक विन्‍यास रचती है। मेरी दृष्‍टि में कथानक, किस्‍सागोई, भाषा और अंदाजेबयां की दृष्‍टि से 'जीकाजि' को विटामिन जिन्‍दगी कहानी प्रतियोगिता में सर्वश्रेष्‍ठ कहानी का पुरस्‍कार दिया जा सकता है।

(डॉ. ओम निश्‍चल)
नई दिल्‍ली
दिनांक: 11.4.2021

नोट: निर्णायक मंडल ने जिन अन्य रचनाओं का ज़िक्र किया है उनके लेखक हैं: मेरी तरफ से हाँ है (लेखक: रमेश कुमार 'रिपु'), तुम सक्षम हो (लेखक: अंचल सक्सेना); उसके हिस्‍से का वसंत (लेखक: डॉ. गीता शर्मा) और द लेफ्ट लेग (लेखक: तत्सम्यक्‌ मनु)