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कभी अहसास होता है मुकम्मल आदमी हूँ मैं | कभी अहसास होता है मुकम्मल आदमी हूँ मैं | ||
21:54, 24 जून 2009 के समय का अवतरण
कभी अहसास होता है मुकम्मल आदमी हूँ मैं
कभी लगता है जैसे आदमी की इक डमी हूँ मैं
कभी हूँ हर खुशी की राह में दीवार काँटों की
कभी हर दर्द के मारे की आँखों की नमी हूँ मैं
धधकता हूँ कभी ज्वालामुखी के गर्म लावे-सा
कभी पूनम की मादक चाँदनी-सा रेशमी हूँ मैं
कभी मेरे बिना सूना रहा, हर जश्न, हर महफिल
कभी त्यौहार पर भी एक सूरत मातमी हूँ मैं
कभी मौजूदगी मेरी चमन में फालतू लगती
कभी फूलों की मुस्कानों की खातिर लाजिमी हूँ मैं