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"लोकप्रिय साहित्य को जब हम समर्पित हो गये / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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श्लोक गीता के सभी तब सारगर्भित हो गये
 
श्लोक गीता के सभी तब सारगर्भित हो गये
  
पीठ पीछे की प्रशंसा, सामने आलोचना  
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पीठ पीछे की प्रशंसा, ही प्रशंसा जानिये 
गुण मेरा अवगुण समझ, परिचित, अपरिचित हो गये
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सामने आलोचना से लोग विकसित हो गये
  
बाँट लें संपत्ति बेटों ने कहा, बापू की अब  
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बाँट लें संपत्ति, बेटों ने कहा, बापू की अब  
 
अस्थियाँ और पुष्प गंगा में विसर्जित हो गये
 
अस्थियाँ और पुष्प गंगा में विसर्जित हो गये
  
क्या पता ? काँधे पे रखकर, किनके बन्दूकें चलीं
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गर्व क्यों कर हो न अपने बाल-बच्चों पर उन्हें
जिनके बल-बूते पे कितने लोग चर्चित हो गये
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आचरण से जिनके अब माँ-बाप चर्चित हो गये
  
जो गये थे गाँव से लौटे नहीं हैं आज तक 
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गाँव ही में छोड़ आये थे जिन्हें बचपन में हम
कौन जाने? हैं अभी या काल कवलित हो गये  
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कौन जाने? हैं अभी, या काल-कवलित हो गये  
  
देख कैसे पायेंगे उन दीन-दुखियों को 'रक़ीब'
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देख कैसे पायेगा उन दीन-दुखियों को 'रक़ीब'
चक्षु, सुनकर ही व्यथा जब अश्रुपूरित हो गये  
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चक्षु, सुनकर ही व्यथा जब अश्रुपूरित हो गये
 
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04:45, 7 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

लोकप्रिय साहित्य को जब हम समर्पित हो गये
काव्यमय अभिव्यक्ति से तन-मन प्रफुल्लित हो गये
 
मोह-माया तज के अर्जुन ने उठाया जब धनुष
श्लोक गीता के सभी तब सारगर्भित हो गये

पीठ पीछे की प्रशंसा, ही प्रशंसा जानिये
सामने आलोचना से लोग विकसित हो गये

बाँट लें संपत्ति, बेटों ने कहा, बापू की अब
अस्थियाँ और पुष्प गंगा में विसर्जित हो गये

गर्व क्यों कर हो न अपने बाल-बच्चों पर उन्हें
आचरण से जिनके अब माँ-बाप चर्चित हो गये

गाँव ही में छोड़ आये थे जिन्हें बचपन में हम
कौन जाने? हैं अभी, या काल-कवलित हो गये

देख कैसे पायेगा उन दीन-दुखियों को 'रक़ीब'
चक्षु, सुनकर ही व्यथा जब अश्रुपूरित हो गये