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"इक दिन हर इक पुरानी दीवार टूटती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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इक दिन हर इक पुरानी दीवार टूटती है।
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एक दिन हर एक पुरानी दीवार टूटती है।
 
क्यूँ जाति की न अब भी दीवार टूटती है।
 
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धक्कों से कब दिलों की दीवार टूटती है।
 
धक्कों से कब दिलों की दीवार टूटती है।
  
हैं लोकतंत्र के अब मजबूत चारों खंभे,
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हैं लोकतंत्र के अब कमज़ोर चारों खंभे,
 
हिलती है जब भी धरती दीवार टूटती है।
 
हिलती है जब भी धरती दीवार टूटती है।
  
हथियार ले के आओ, औजार ले के आओ,  
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हथियार ले के आओ, औज़ार ले के आओ,
 
कब प्रार्थना से कोई दीवार टूटती है।
 
कब प्रार्थना से कोई दीवार टूटती है।
  
रिश्ते बबूल बनके चुभते हैं ज़िंदगी भर,
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रिश्ते बबूल बन के चुभते हैं ज़िंदगी भर,
शर्मोहया की जब भी दीवार टूटती है।
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शर्म-ओ-हया की जब भी दीवार टूटती है।
 
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13:09, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

एक दिन हर एक पुरानी दीवार टूटती है।
क्यूँ जाति की न अब भी दीवार टूटती है।

इसकी जड़ों में डालो कुछ आँसुओं का पानी,
धक्कों से कब दिलों की दीवार टूटती है।

हैं लोकतंत्र के अब कमज़ोर चारों खंभे,
हिलती है जब भी धरती दीवार टूटती है।

हथियार ले के आओ, औज़ार ले के आओ,
कब प्रार्थना से कोई दीवार टूटती है।

रिश्ते बबूल बन के चुभते हैं ज़िंदगी भर,
शर्म-ओ-हया की जब भी दीवार टूटती है।