भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपकी शरारत भी आपकी इनायत है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:46, 3 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> आपकी शरा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आपकी शरारत भी आपकी इनायत है
जो भी है मेरे दिलबर आपकी मुहब्बत है

ये सियाह ज़ुल्फ़ें ही इक निक़ाब है तेरा
ये जो रुख़ से हट जाएँ, सब कहें, "क़यामत है"

बज़्मे-नाज़ में बेशक दिल तेरा धड़कता है
ज़ब्त हो मगर इक पल वक़्त की नज़ाकत है

जो लिखा है क़िस्मत में बस वही अता होगा
फिर भी आपको इससे, उससे क्यों शिकायत है

सोचता हूँ यारों ने दिल ही मेरा तोड़ा है
शुक्र है ख़ुदा मेरे, सर मेरा सलामत है

मौत इक हक़ीक़त है पर मेरे वतन वालो
जो वतन की ख़ातिर हो ऐसी मौत नेमत है

नाम में है क्या रक्खा सब हबीब हैं बेहुब्ब
मैं 'रक़ीब' हूँ बेशक पर कहाँ रक़ाबत है