भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहले दिल से निकाल देते हैं / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:54, 4 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम कश्यप बेचैन }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> पहले दिल से निका…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले दिल से निकाल देते हैं
फिर हम उनकी मिसाल देते हैं

ताकि टिक जाएँ और अंगारे
राख ऊपर से डाल देते हैं

उनके चेहरे बुझे-बुझे से हैं
जो सुलगते सवाल देते हैं

जब भी रोटी की बात चलती है
आप नारे उछाल देते हैं

क्या यहाँ आदमी नहीं बसते
नाक पर क्यों रुमाल देते हैं

पूछिये मत सिफ़त पसीनों की
ये लहू को खंगाल देते हैं

ये भी मुद्दा है कोई कह-कह के
लोग मसले को टाल देते हैं

सच वो बेवा है अपने लोग जिसे
घर से बाहर निकाल देते हैं