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अन्धे जहान के अन्धे रास्ते / शैलेन्द्र

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अन्धे जहान के अन्धे रास्ते, जाएँ तो जाएँ कहाँ
दुनिया तो दुनिया तू भी पराया, हम यहाँ न वहाँ

जीने की चाहत नहीं, मर के भी राहत नहीं
इस पार आँसू, उस पार आहें, दिल मेरा बेज़ुबाँ

हमको न कोई बुलाए, न कोई पलकें बिछाए
ए ग़म के मारो, मंज़िल वहीं है, दम ये टूटे जहाँ

आगाज़ के दिन तेरा अंजाम तय हो चुका
जलते रहे हैं, जलते रहेंगे, ये ज़मीं-आसमाँ

फ़िल्म : पतिता-1953