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आत्मन्‌ के गाए कुछ गीत (लौटना) / प्रकाश

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आत्मन्‌ प्रथम से जीवित था
वह जीवित अदृश्य होता था
और जीवित ही दृश्य में लौटता था
लौटकर दृश्य में वह ख़ुद को पुनः जीवित करता था
पुनः जीवित होकर वह प्रत्येक दृश्य को
पुनः जीवित करता था

आख़िरकार अनगिन जीवित दृश्यों के अनन्त उजाले में
आत्मन्‌ स्वयं एक ज्योतित दृश्य बन जाता था !