भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्य / सुरेश यादव

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 13 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश यादव }} {{KKCatKavita‎}} <poem> होगा सत्य सिद्धांत भी हो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


होगा सत्य
सिद्धांत भी होगा
और अनुभव भी सारे ज़माने का
कि 'पानी आग बुझाता है'
देखा मैंने लेकिन
खुद अपनी आँखों से
दहकते अंगारों पर
जब गिरता पानी बूंद-बूंद
जल जाता है

शक्ति के हाथों
छलते हैं सिद्दांत कैसे
'सत्य' कैसे शक्ति के हाथों मिट जाता है.