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पेड़ जितने सफ़र में घनेरे मिले / रोशन लाल 'रौशन'

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पेड़ जितने सफ़र में घनेरे मिले
उनके साए में बैठे लुटेरे मिले

रौशनी में नहाए अँधेरे मिले
शर्म से मुँह छुपाए सवेरे मिले

जाने यादों के पंछी कहाँ खो गए
शाख़-दर-शाख़ उजड़े बसेरे मिले

काफ़िले पर जो गुज़री नहीं जानता
अधजले और वीरान डेरे मिले

तेरे बारे में 'रौशन' बहुत-कुछ कहा
चाहने वाले जितने भी तेरे मिले