भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वर / प्रभात कुमार सिन्हा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:03, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात कुमार सिन्हा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> भयभीत …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


भयभीत हैं स्वर
स्वर कातर हैं
प्यासे कंठ की तरह रुक्ष हैं स्वर
स्वर थरथरा रहे हैं बांसुरी के

सावन नहीं बरसा
भादो नहीं बरसा
सूखे पनघट पर सिसक रहे हैं स्वर
बांसुरी के स्वर कर्कश बन
प्रवेश करना चाहते हैं -
जिला कलक्टर के घर