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संशय / मनोज कुमार झा

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आग की पीठ से पीठ रगड़ना कभी, कभी पैरों में बाँध लेना जल की लताएँ
रात की चादर की कोई सूत खींच लेना, फेंट देना उसे सुबह के कपास में
कमल के पत्ते से छुपाना चेहरा, फ़ोटो खिंचवाना गुलाब से गाल सटाकर
ट्रेन से कूदना देखने मोर का नाच और बुखार में हाथ हिलाना जुलूसियों को

कोई मेघ उड़ेलता उस घाट जल जहाँ मेरी लालसाएँ धोती हैं वस्त्र
या बस लुढ़क रहा एक पत्थर बेडौल अटपट गुरूत्त्व के अधीन