भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छावते कुटीर कहूँ रम्य जमुना कै तीर / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 4 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' |संग्रह=उद्ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छावते कुटीर कहूँ रम्य यमुना के तीर
गौंन रौन -रेती सौं कदापि करते नहीं ।
कहैं रत्नाकर बिहाय प्रेम गाथा गूढ
स्रौन रसना में रस और भरते नहीं ।
गोपी ग्वाल बालनि के उमड़त आँसू देखि
लेखि प्रलयागम हूँ नैकु डरते नहीं ।
होतौ चित चाव जो न रावरे चितावन क
तज ब्रज-गाँव इतै पाँव धरते नहीं ।