भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ये नादान / दीपक मशाल

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 29 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक मशाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> तुमन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुमने जो इत्र लाके दिया था
उसकी महक फीकी नहीं हुई अभी
जो अंगूठी दी थी
उसकी भी चमक वैसी ही है
जैसी पहले दिन थी..
और तुम्हारी पहनाई पायलों में भी
वही झनक बरक़रार है..
तुम्हारे साथ पिछले बरस
चूड़ी बाज़ार से जो टिकुली वाली रोली ली थी
वो भी अपनी लाली संग जस की तस है..
हाय ये नादान तलाक का मानी क्यों नहीं समझते???