भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठ / पवन करण
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 28 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन करण |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> यदि यह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
यदि यह झूठ है तो भी मेरी गति में
इसने अपनी जगह बना ली है
ऐसा झूठ जो दुनिया में जुबान से अधिक
लोगों की आँखों से बोला गया है
दुनिया सबकी हो सब इसे सबकी मानें
यह झूठ है तो मेरी तरह इसे
कौन नही बोलना चाहेगा
वह तो इसे बार-बार दोहराना चाहेंगे
जिन्हें यह लगता है यह दुनिया
उतनी उनकी नहीं
जितना इसे होना चाहिए उनका
झूठ ही तो था जो ढह गया है
जो ढह गया वह झूठ रहा होगा
मगर यह झूठ तो लगातार
अपने बोले जाने को अभिशप्त है