भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है / दीप्ति नवल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 9 नवम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीप्ति नवल |संग्रह= }} Category:कविता <poeM...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है
चाँदनी उतर आयी बर्फ़ीली चोटियोँ से
तमाम वादी गूँजती है बस एक ही सुर में

ख़ामोशी की यह आवाज़
होती है…
तुम कहा करते हो न!

इस क़दर सुकून कि जैसे सच नहीं हो सब

यह रात चुरा ली है मैनें
अपनी ज़िन्दगी से अपने ही लिये