भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो मनवा उस देश को / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:40, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    चलो मनवा उस देश को,
    हंसा करत विश्राम

(१) वा देश चंदा सुरज नही,
    आरे नही धरती आकाश
    अमृत भोजन हंसा पावे
    बैठे पुरष के पासा...
    चलो मनवा...

(२) सात सुन्न के उपरे,
    सतगरु संत निवासा
    अमृत से सागर भरिया
    कमल फुले बारह मासा...
    चलो मनवा...

(३) ब्रह्मा विष्णु महादेवा,
    आरे थके जोत के पासा
    चैदह भवन यमराज है
    वहां नहीं काल का वासा...
    चलो मनवा...

(४) कहत कबीर धर्मदास से,
    तजो जगत की आसा
    अखंड ब्रह्मा साहेब है
    आपही जोत प्रकाशा...
    चलो मनवा...