भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुसुम चयन / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:43, 22 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
जो न बने वे विमल लसे विधु-मौलि मौलि पर।
जो न बने रमणीय सज, रमा-रमण कलेवर।
बर बृन्दारक बृन्द पूज जो बने न बन्दित।
जो न सके अभिनन्दनीय को कर अभिनन्दित।
जो विमुग्धा कर हुए वे न बन मंजुल-माला।
जो उनसे सौरभित प्रेम का बना न प्याला।
कर के नृप-कुल-तिलक क्रीट-रत्नों को रंजित।
कर न सके जो कलित-कुसुम-कुल महिमा व्यंजित।
जो न सुबासित हुआ तेल उनसे वह आला।
जिसने सुखमय व्यथित-जीव-जीवन कर डाला।
जो न गौरवित हुए वे परस गुरु-पद-पंकज।
जो न लोकहित करी बनी उनकी सुन्दर रज।
तो किसी काल में क्यों करे विकच-कुसुम-चय का चयन।
कर भावुक अवमानना भाव भरा भावुक सुजन|