भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुनिया की महान उपलब्धियों के लिए एक शोकगीत / बसंत त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:28, 15 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसंत त्रिपाठी }} {{KKCatKavita}} <poem> खालीपन द...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खालीपन दौड़ता है पसलियों के बीच धड़कते नन्हे-से दिल में
दिन की रफ्तार रातों में घुलती चली जाती है
हर बार आशंकाएँ चील की तरह झपट्टा मारती हैं
हर बार छूट जाता है आदमी अपनी परछाईं के साथ
                         बिल्कुल अकेला

नमकीन रौशनी में चमकते थे जो लिपे-पुते चेहरे
अँधेरे के आँचल में सिर छुपाए देर तक सुबकते हैं
मृत्यु दिन-ब-दिन आसान हुई जाती है
बेकारों की टोली से कम होते जाते हैं कुछ चेहरे
                          जिंदगी मिट्टी का ढेला

शेयर बाजार का साँड़ हुंकारता है किसानों की हड्डियों में
कंप्यूटर की मंदी में अर्थहीन हो जाती है खाद की तेजी
जीवन भर थकहारकर कमाता है किसान एक मजबूत फंदा
बँधा था जो आस की रस्सी से, टूट जाता है वह
                          जिंदगी का रेला