भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दिन / महेश वर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा }} {{KKCatKavita}} <poem> पार उतरने से...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पार उतरने से पहले,
छू कर नदी का जल, मैं किसे याद करूँगा?
थोड़ी देर को रुक जाएगा दिशाओं में हवा का गान,
किसी सूर्य और आकाश को नहीं,
देखता हुआ कोई निरर्थक घास -
कुछ देर ऐसे ही बैठा रहूँगा।
एक दिन मैं भी इसी तट आऊँगा पूर्वजों
तुमसे ही पूछूँगा इस नदी को पार करने का मार्ग
पुण्य से या शोक से,
ज़िद से या शौर्य से,
पाप से या कविता से,
कैसे तुम पार उतरे पितरों?
अधूरे शब्दों से बनाकर टूटी नाव,
गर्म धूल आँखों में भरे,
युद्ध क्षेत्र से बचाकर अपना खोखला सीना
एक दिन मैं भी इस तट आऊँगा पूर्वजों।
पार करूँगा यह नदी।