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जब भी कभी देखा उसे / निश्तर ख़ानक़ाही

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सतरें* जो थीं ग़ायब हुईं, धुँधला-सा इक धब्बा मिला
सदियों में जो लिखा गया, वो भी वरक़ सादा मिला

आँखों में कुछ बोसे मिले, बिस्तर पे इक वादा मिला
लौटा तो पल गुज़रा हुआ, चौखट पे उफ्तादा* मिला

वो क्या था इक हैरत, कहा जब भी कभी देखा उसे
चेहरे पे ख़ामोशी मिली, पर्दे पे हंगामा मिला

जाती रूतों की धूलों में आते हुए मौसम मिले
उगते हुए हर पेड़ में इक तुख़्में-नापैदा* मिला

सदियों का यह अंधा सफ़र लाया मुझे किस मोड़ पर
सब रास्ते गुम हो गए, जब जाके इक गोशा मिला

1-पक्तियां

2-गिरा हुआ

3-अनंकुरित बीज