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देखना हो तो बुलन्दी पे पहुँच कर देखो / 'महताब' हैदर नक़वी

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देखना हो तो बुलन्दी पे पहुँच कर देखो
चारसू छाये हुए शहर के मन्ज़र देखो

घर में बैठो तो कई साये परेशान करें
और निकलो तो कड़ी धूप को सर पर देखो

गोश अगर हैं तो सुनों दिल के धड़कनों की सज़ा
जू-ए-ख़ूँ चश्म-ए-तहय्युर से बहाकर देखो

रोशनी उसके ख़यालों में कुछ ऐसी है कि बस
धयान आये तो हर इक राह मुनव्वर देखो

छोड़ आये थे जिन्हें अगले ज़माने में कभी
मौसम-ए-गुल में सभी चेहरे बराबर देखो

हमने क्या सर्फ़ किया ख़ून-ए-जिगए शेरों में
हम से बेहतर नहीं कोई भी सुख़नवर देखो