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इस चैत को / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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इस चैत को
पूरे १६ की हो गयी 'बैसखिया'
काम भी ज्यादा मिलने लगा था
खेतों पर 'बाबू साहेब को
'नये' ईमानदार लोगन
पर भरोसा रहा और,
१६ से ज्यादा नया तो
कउनो मजूरा नहीं था
अधेड़ थे या उस से ऊपर
'प्रतिपदा' की सुबह
नयी देह के अनाज वाले गेंहू की बालियों को
ओढ़ाई मिली एक ओढ़नी
बैसखिया की माई बोली
अन्नदाता को सबसे पहले
नयी फसल का अनाज चढ़ावत हैं
मुंह न खोलियो
अन्नदाता रुष्ट हो जावेंगे
हम नमकहराम थोड़े न हैं