भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे / महेन्द्र मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:07, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे
अनका पती के देखि हँसेली ठठार के।
माथा खजुआवे बाजूबंद झनकावे अरू
अँखिया लडावे चले छतिया उघार के।
सांस ओ ननद के तऽ रोजे इ उपास राखे
चूल्ही का चलवना से मारे ली भतार के।
कहत महेन्द्र इहें लच्छन करकसा के
भेजेली रसातल ई त ऽ कुल परिवार के।