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मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता / अनुलता राज नायर
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मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.
एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
पीकर दरिया मन, भरा नहीं लगता.
चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
सोने का ये दिल खरा नहीं लगता.
अपने ही घर में अनजान से हम
अपना सा कोई ज़रा नहीं लगता
हैवानों से भरी ये दुनिया तेरी है
कि कोई भी इंसा बुरा नहीं लगता.
सुनता नहीं वो मेरी, इन दिनों
कहते है जिसको खुदा,बहरा नहीं लगता.