भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभि‍नय की तरह / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Kavita Kosh से
Uttamrao Kshirsagar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:36, 31 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छद्म हमें अपनी दुनि‍या में अकेला
वि‍वश करता है
                   होने के लि‍ए ।

हम तड़पते हैं और चीख़ नहीं पाते !
कोई भी कर सकता है हमारी मदद
पर, हम, पु का र ते नहीं !
आतंकि‍त होकर भी आतंकि‍त नहीं होते
चलते हैं दौड़ने की तरह
दौड़ते हैं चलने की तरह

आसपास की चीज़ों को
शक्‍की की तरह नि‍हारते हैं
'संदि‍ग्‍ध चीज़ों में वि‍स्‍फोट का ख़तरा है'
ख़तरे बहुत से हैं
ख़तरों से बचने के उपाय बहुत से हैं
बहुत से हैं भय
                भय से बच सकते हैं
         पर, बचते नहीं हैं
                ख़तरों से बच सकते हैं
          पर बचते नहीं हैं
                बचकर भी भागते हैं तो बच नहीं पाते
जैसे-तैसे
           जी लेते हैं _ अभि‍नय की तरह

                                                -2000 ई0