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नफ़रत के परदे में / उत्‍तमराव क्षीरसागर

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आँधि‍याँ ठि‍ठुरती हुई
             काँपती हुई
        थ र थ रा ती हुई


एक बुज़ुर्ग आवाज़ की कडक


        महँदी आसमानों में रची
        बादलों में काजल लगा
चाँद माथे पर सजा, पूरा का पूरा
        गोल
        पीला - पीला चौदहवीं का


नफ़रत के परदे में
    चली तलवारें
चमक - चमक उट्ठा
      सफ्फ़ाक !
प्रेम...


       पुनवा फागुनी
            ख़ूब रँगी और ख़ूब रँगी
       एक लहूलुहान रात

                            - 1999 ई0