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न ग़ज़ल समझे न गीत समझे / धीरेन्द्र अस्थाना

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मेरे हालात को न ग़ज़ल समझे
न गीत समझे,

वख्त का था क्या तकाज़ा...
न कोई जज़्बात समझे,
न रीत समझे...

ये गुज़रे कल के ज़ख्म हैं...
जिन्हें न हमदम समझे,
न मीत समझे...

दिल कि बाज़ी में हार गये...
फिर भी न हार हम समझे,
न जीत समझे...

बाद मुद्दत के आये अश्क...
इन्हें न फाजिल समझे,
न प्रीत समझे...

मेरे हालात को न ग़ज़ल समझे
न गीत समझे...!