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इस योनि में, मैं / विपिन चौधरी

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सभी योनियों में अपने भाग्य पर इतराने के कई कारण थे
सभी तैंतीस करोड़ योनियों में
मैं यम की मजबूत निगेहबानी में थी
ब्रह्मा, विष्णु, महेश मेरे अगल बगल ही टहल रहे थे
तीनों देवियाँ मुझ पर अथाह मेहरबान थीं
उसी लक्ष्मी ने धन की ललक थमायी
सरस्वती ने ज्ञान का दर्प दिया
पार्वती ने साहस की सीनाजोरी
चारों पहर की तफरी के लिए
हाथ बांधे खड़ी थी
मेनका, उर्वशी, रम्भा और तिल्लोतमा सी मोहक अप्सराएं
नारद हंसोड़ दूत सा इधर-उधर की खबरें ला
मेरे भारी मौसम को हल्का किया करता था
विष्णु के दसों अवतारों से अच्छा खासा परिचय था मेरा
योनियों की परिक्रमा कर मनुष्य योनि तक
पहुंचते न पहुँचते
सभी सरमायेदार एक-एक कर साथ छोडते गए
सबको अपनी व्यस्ताओं का तकाजा था
तीनों देवियाँ अपने पतियों की सेवा टहल में मुस्तैद हो गयीं
चारों अप्सराओं पर गृहस्थी का दबाव बढ़ गया
दसों अवतारों ने हिमालय की ओर रुख कर लिया
रह गयी मैं निपट अकेली
मनुष्य योनि का भार ढोने और
किसी दूसरी बेहतर योनि में टापने की प्रबल उत्कंठा के साथ