भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कूरम पै कोल-कोल (गंगा-स्तुति) / पद्माकर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 29 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
कूरम पै कोल कोल हू पै सेष कुंडली है,
कुंडली पै फबी फैल सुफन हजार की.
कहै ‘पदमाकर’ त्यों फन पै फबी है भूमि,
भूमि पै फबी है थिति रजत पहार की.
रजत पहार पर सम्भु सुरनायक हैं,
सम्भु पर जोति जटाजूट है अपार की.
सम्भु जटाजूट पै चंद की छुटि है छटा
चंद की छटान पै छटा है गंगधार की.१.
                        
बिधि के कमंडलु की सिद्धि है प्रसिद्धि यही,
हरि-पद-पंकज-प्रताप की लहर है.
कहै ‘पदमाकर’ गिरीस–सीस-मंडल के,
मुंडन की माल ततकाल अघहर है.
भूपति भगीरथ के रथ को सुपुन्य पथ,
जह्नु–जप-जोग-फल-फैल की फहर है.
छेम की लहर, गंगा रावरी लहर,
कलिकाल को कहर, जम जाल को जहर है.२.

जमुपुर द्वारे, लगे तिनमें केवारे,
कोऊ हैं न रखवारे ऐसे बन के उजार हैं.
कहै ‘पदमाकर’ तिहारे प्रन धारे,
तेऊ करि अधमारे सुरलोक को सिधारे हैं.
सुजन सुखारे करे पुन्य उजियारे,
अति पतित कतारे भवसिंधु तें उतारे हैं.
काहू ने न तारे तिन्हैं गंगा तुम तारे,
और जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं.३.