भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब मैं कौन उपाय करूँ / नानकदेव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 22 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुरु नानकदेव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब मैं कौन उपाय करूँ॥

जेहि बिधि मनको संसय छूटै, भव-निधि पार करूँ।
जनम पाय कछु भलौ न कीन्हों, तातें अधिक डरूँ॥

गुरुमत सुन कछु ग्यान न उपजौ, पसुवत उदर भरूँ।
कह नानक, प्रभु बिरद पिछानौ, तब हौं पतित तरूँ॥