भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
महलां तै बैठी तेरी माता झरुवै / हरियाणवी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:22, 17 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=हरियाणवी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
महलां तै बैठी तेरी माता झरुवै, देख जेठानी का पूत
जाहर एक घरूं घर आ
सासरै तेरी बेबे रे झरुवे देख जेठानी का बीर
जाहर एक घरूं घर आ
पीहर में तेरी गोरी झरुवै देख भाणका नाथ
जाहर एक घरूं घर आ
सातैं ने आऊं ना मैं आठैं ने आऊं आऊं नवमी की रात
जाहर एक घरूं घर आ
धड़ धड़ धरती पाट के सुध लीलै गया समाय
जाहर एक घरूं घर आ