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गाँव- गाँव के खेत हरे हैं / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल

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गाँव- गाँव के खेत हरे हैं
मटमैले पानी से छल-छल
उछल रहे भरके डबरे हैं
गाँव- गाँव के खेत हरे हैं।
लहराती मस्ती धानी-धानी
छिछला रहा रिमझिम का पानी
घोप उठे, काजल से बादल
पुरवाई बहती दीवानी,
घर दुआर में, घन कछार में
मृदु तान भरे स्वर धार झरे हैं।
गाँव- गाँव के खेत हरे हैं।
दिन रात ओरवती चलता है
दिन अनजाना-सा ढलता है
मधुर सुहानी साँझ समेटे
घूँघट में दीपक चलता है
दादुर झींगुर के स्वर बोझिल
पलकों पर निशिमद उतरे हैं।
गाँव-गाँव के खेत हरे हैं।