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बैठी है गर्मी / सूर्यकुमार पांडेय

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सूरज बाबा के कन्धों पर,
बैठी है गर्मी।
कहती- बाबा, मुझे घुमाओ,
शिमला-नैनीताल दिखाओ!
भर गिलास लस्सी पिलवाओ,
कुल्फी आइसक्रीम खिलाओ!
वरना परेशान कर दूँगी,
लू-लपटों से घर भर दूँगी।
लाख मनाते बाबा, लेकिन
ऐंठी है गर्मी।

बाबा कहते- बिटिया रानी,
ठीक नहीं इतनी मनमानी!
जितना चाहो पी लो पानी,
लेकिन अब छोड़ो शैतानी!
मत इतनी इतराओ-ऐंठो,
पंखे के नीचे जा बैठो।
बात मान बाबा की घर में
पैठी है गर्मी।