भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिड़िया आई / सरस्वती कुमार दीपक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 3 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरस्वती कुमार दीपक |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिड़िया आई, तिनके लाई,
उड़ी फुर्र से, फिर से आई।

चिड़ा चिड़चिड़ा, चिड़िया भोली,
चूँ-चूँ-चूँ चिड़िया की बोली,
बोली, जैसे शरबत घोली,
सुन-सुन मन की बगिया डोली,
चिड़िया रानी, सबको भाई!

तिनके तोड़े, तिनके जोड़े,
ऊपर खींचे, नीचे मोड़े,
चिड़ा-चिड़ी के खेल निगोड़े,
काम अधूरे कहीं न छोड़े,
कितनी प्यारी बात सिखाई!

अपना घर, हम आप बनाएँ,
तिनका-तिनका जोड़ सजाएँ,
नहीं आँधियों से घबराएँ,
अपने घर बैठे, मुसकाएँ,
प्यार भरी हम लड़ें लड़ाई!